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“भारत का चावल कटोरा” बनाने की दिशा में कदम: बिहार कृषि विश्वविद्यालय ने विकसित की चार नई धान की किस्में

By Milling & Millers Bureau

बिहार कृषि विश्वविद्यालय (BAU) ने बिहार और विशेष रूप से भागलपुर को भारत का “चावल का कटोरा” बनाने की दिशा में एक बड़ी उपलब्धि हासिल की है। विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों ने चार नई, उच्च उपज वाली, रोग-प्रतिरोधक और जलवायु अनुकूल धान की किस्में विकसित की हैं।

इन नई किस्मों में शामिल हैं —
सबौर कतरनी धान-1, सबौर सांबा धान, सबौर विभूति धान और सबौर श्री सब-1।
इन्हें बिहार कृषि विश्वविद्यालय द्वारा जारी किया गया है और राज्य किस्म विमोचन समिति (SVRC) को मूल्यांकन हेतु भेजा गया है।

विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ. डी. आर. सिंह ने रविवार को जानकारी देते हुए बताया,
“इसके बाद इन किस्मों को केंद्रीय किस्म विमोचन समिति (CVRC) और केंद्रीय बीज समिति (CSC) को राष्ट्रीय स्तर पर अनुशंसा के लिए भेजा जाएगा।”

धान की चारों किस्मों की विशेषताएं

1. सबौर कतरनी धान-1:
वैज्ञानिक मंकेश कुमार और उनकी टीम द्वारा विकसित यह किस्म जल्दी पकने वाली, गिरने से बचने वाली (non-lodging) और अत्यधिक उत्पादक है। इसकी उपज मौजूदा किस्मों से डेढ़ गुना अधिक है। बीजों का व्यापक उत्पादन जल्द ही भागलपुर के किसानों के लिए शुरू किया जाएगा।

2. सबौर सांबा धान:
प्रकाश सिंह और उनकी टीम द्वारा विकसित इस किस्म में मध्यम-लंबे दाने हैं और उत्पादन क्षमता काफी अधिक है। यह बापतला किस्म का बेहतर विकल्प बन सकती है और इसे 100 एकड़ खेतों में प्रदर्शित किया जाएगा।

3. सबौर श्री सब-1:
श्वेता सिन्हा की टीम द्वारा विकसित यह किस्म जलभराव सहनशील है और 14 दिनों तक पानी में डूबी रहने की स्थिति में भी जीवित रह सकती है। इस स्थिति में प्रति हेक्टेयर 30–35 क्विंटल और सामान्य परिस्थितियों में 50–55 क्विंटल उपज देती है।

4. सबौर विभूति धान:
अमरेंद्र कुमार की टीम द्वारा विकसित यह किस्म बैक्टीरियल लीफ ब्लाइट रोग के प्रति सहनशील है और जीन पिरामिडिंग तकनीक के माध्यम से उच्च उपज प्रदान करती है।

किसानों के लिए नई उम्मीद

कुलपति ने बताया कि बिहार कृषि विश्वविद्यालय की अनुसंधान परिषद ने इन चारों किस्मों को मंजूरी दे दी है और अब इनका व्यापक स्तर पर प्रदर्शन, पैकेजिंग और वितरण सुनिश्चित किया जा रहा है। यह प्रक्रिया वर्तमान वर्षा ऋतु में भी लागू की जाएगी, ताकि किसान इनका लाभ उठा सकें।


यह पहल बिहार की कृषि को आत्मनिर्भर और वैज्ञानिक आधार पर सशक्त बनाने की दिशा में एक अहम कदम मानी जा रही है। इससे न केवल किसानों की आय बढ़ेगी, बल्कि राज्य को चावल उत्पादन में अग्रणी बनाने में भी मदद मिलेगी।

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