“भारत में कृषि संकट की चेतावनी: दालों और तिलहनों की अनदेखी से गहराएगा संकट, विशेषज्ञों की राय”
By M&M Bureau
भारत का कृषि क्षेत्र इन दिनों मिश्रित संकेत दे रहा है, खासकर उन फसलों के मामले में जो देश की खाद्य और व्यापार सुरक्षा के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण हैं — जैसे दालें और तिलहन। हालांकि बुआई के कुल आंकड़े उत्साहजनक लग सकते हैं, लेकिन कृषि नीति विशेषज्ञ देविंदर शर्मा का कहना है कि असली तस्वीर उतनी सकारात्मक नहीं है, जितनी दिखाई जा रही है।
CNBC-TV18 को दिए एक इंटरव्यू में शर्मा ने कहा,
“जब हम 10% की बुआई वृद्धि की बात सुनते हैं तो वह रोमांचक लगती है, लेकिन जब हम वास्तविक आंकड़ों की तह में जाते हैं, तो कोई उत्साहजनक संकेत नहीं मिलते।”
उनके अनुसार, इस आंकड़े की वृद्धि का अधिकांश हिस्सा गेहूं की बुआई से आ रहा है, जबकि दालों और तिलहनों में मूलभूत सुधार नहीं हुआ। जबकि यही दो फसलें हैं जो देश की खाद्य आत्मनिर्भरता और आयात घटाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती हैं।
शर्मा ने कहा कि किसानों का इन फसलों से रुझान कम हो रहा है क्योंकि कीमतें लागत से भी कम हैं। उदाहरण के लिए, सोयाबीन ₹4,300–₹4,600 प्रति क्विंटल बिक रहा है, जबकि उसका MSP इससे ऊपर है। उन्होंने कहा,
“अगर फसल की कीमत लागत भी नहीं निकालती, तो किसान दूसरी ओर देखना शुरू कर देता है।”
पिछले वर्ष भारत ने ₹46,000 करोड़ की दालों का आयात किया है। शर्मा ने कहा कि कटाई के समय सस्ता आयात बाजार में आने से घरेलू कीमतें गिरती हैं, जिससे किसानों को नुकसान होता है और उनका मनोबल टूटता है।
GM (जेनेटिकली मॉडिफाइड) फसलों को समाधान मानने को भी शर्मा ने स्पष्ट रूप से नकार दिया। उन्होंने कहा,
“समस्या बीज तकनीक की नहीं, बल्कि किसानों को मिलने वाले लाभ की है।”
शर्मा ने यह भी चेतावनी दी कि भारत की गैर-GM सोया उत्पादक देश के रूप में जो वैश्विक पहचान है, वह GM फसलों के ज़रिये कम समय के लाभ के लिए खोई नहीं जानी चाहिए।
शर्मा का सुझाव है कि भारत को चाहिए कि वह गैर-GM, टिकाऊ और सेहतमंद खेती को बढ़ावा दे, और किसानों को सही मूल्य दिलाने के लिए नीति तैयार करे, जिससे उनकी उत्पादकता बढ़े और उन्हें अपने फसलों से आत्मविश्वास मिले।