हाइब्रिड चावल पर यू-टर्न: कैसे पंजाब की राइस मिलों ने बहिष्कार से अपनाने तक का सफ़र तय किया
पंजाब में हाइब्रिड धान को लेकर एक साल में ही हालात पूरी तरह बदल गए हैं। पिछले खरीफ सीजन में जहां राज्य के धान शेलरों ने इन किस्मों को सख्ती से ठुकरा दिया था, वहीं इस साल वही मिलर इन्हीं किस्मों को खुलेआम अपना रहे हैं। यह तब हो रहा है जब राज्य सरकार ने अब भी इन बीजों की बिक्री पर प्रतिबंध लगाया हुआ है। यह बदलाव महज़ बीजों का नहीं, बल्कि नीतिगत अस्थिरता, बदलते मौसम और बाज़ार की मजबूरियों का आईना भी है।
पिछले साल मिलरों ने हाइब्रिड धान के ख़िलाफ़ तीखा विरोध जताया था। उनका कहना था कि ये किस्में फूड कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया (FCI) द्वारा तय किए गए आउटटर्न रेशियो (OTR) को पूरा नहीं करतीं। एफसीआई का मानक 67 प्रतिशत का OTR है, जबकि मिलरों ने दावा किया कि हाइब्रिड धान से केवल 60 से 63 प्रतिशत तक चावल निकलता है। इस वजह से सरकारी खरीद में भारी नुकसान हुआ। नतीजतन पंजाब सरकार ने 2025 खरीफ सीजन से पहले ही इन बीजों की बिक्री पर रोक लगा दी। मामला अदालत तक पहुंचा, लेकिन तब तक बोआई का समय बीत चुका था।
प्रतिबंध के बावजूद किसानों ने हरियाणा और हिमाचल प्रदेश से हाइब्रिड बीज मंगवाकर बोआई कर दी। जब तक अदालत का फैसला आया, खेतों में फसल खड़ी थी। इससे साफ़ हुआ कि नीतियों और ज़मीनी हकीकत के बीच गहरा अंतर मौजूद है। इस साल मौसम ने हालात और बदल दिए। सितंबर की लगातार बारिश, फिर तेज़ गर्मी और उसके बाद अक्टूबर की अनियमित बरसात ने फसल को नुकसान पहुंचाया। पैदावार घटकर 28-30 क्विंटल से घटकर 22-23 क्विंटल प्रति एकड़ रह गई।

उपज में आई इस गिरावट के बाद मिलरों को डर था कि उनकी मिलें खाली रह जाएंगी। इसलिए उन्होंने हाइब्रिड धान की ओर रुख किया। एक कपूरथला के मिलर ने बताया, “इस साल हमारे पास हाइब्रिड धान के अलावा कोई विकल्प नहीं है। भले ही OTR थोड़ा कम आए, लेकिन हमें मिल चालू रखनी है।” लुधियाना के एक अन्य मिलर ने कहा, “अगर हमने हाइब्रिड नहीं खरीदा होता, तो हमारे शेलर खाली पड़ जाते। नुकसान सहकर भी मिल चलाना बेहतर है।”
दूसरी ओर किसान इसे शेलरों की “दोहरे मापदंड” की नीति बता रहे हैं। मुक्तसर साहिब के किसान बलदेव सिंह ने कहा, “पिछले साल जब हाइब्रिड ने हमें 5-6 क्विंटल प्रति एकड़ ज्यादा पैदावार दी तो मिलरों ने मना कर दिया। अब जब उपज कम हुई तो वही मिलर हाइब्रिड पर टूट पड़े हैं। ये नीति किसानों को नुकसान पहुंचाती है और अनिश्चितता बढ़ाती है।”
कृषि विशेषज्ञों का मानना है कि हाइब्रिड किस्मों में कोई तकनीकी कमी नहीं है। असली समस्या पुरानी मिलिंग मशीनरी, कटाई और सुखाने की पारंपरिक तकनीकों में है। उनका कहना है कि हाइब्रिड बीजों पर प्रतिबंध लगाने के बजाय सरकार को गुणवत्ता की निगरानी पर ज़ोर देना चाहिए। एक बार बीज केंद्र द्वारा नोटिफाई हो जाए तो उसे राज्य स्तर पर रोका नहीं जा सकता।
वर्तमान में पंजाब में आठ हाइब्रिड धान की किस्में अधिसूचित हैं, जो 35–40 क्विंटल प्रति एकड़ उपज देती हैं और 125–130 दिन में पकती हैं। किसानों के मुताबिक ये किस्में राज्य के जल संकट और पराली प्रबंधन में मददगार हो सकती हैं। विशेषज्ञों का सुझाव है कि सरकार को प्रतिबंध लगाने की बजाय एक स्थिर और वैज्ञानिक नीति बनानी चाहिए, ताकि उत्पादन, प्रोसेसिंग और बाज़ार के बीच संतुलन बना रहे।
यह पूरा मामला सिर्फ हाइब्रिड बीजों का नहीं, बल्कि पंजाब की कृषि नीति की अस्थिरता और मौसम से जुड़ी चुनौतियों की कहानी है। पिछले साल जिसे नुकसानदायक बताया गया, वही इस साल धान मिलों की ज़रूरत बन गया। अगर पंजाब को कृषि क्षेत्र में प्रतिस्पर्धात्मक बढ़त बनाए रखनी है, तो नीतियों को मौसमी प्रतिक्रियाओं से ऊपर उठकर स्थिर, पारदर्शी और वैज्ञानिक आधार पर बनाना होगा। किसानों, मिलरों और सरकार — तीनों के बीच भरोसे का यह पुल ही कृषि के भविष्य को टिकाऊ दिशा दे सकता है।