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केंद्र ने दी बड़ी राहत: अब 10% तक खराब धान की खरीद की अनुमति, पंजाब के किसानों को आंशिक सहारा

केंद्र सरकार ने आखिरकार पंजाब के किसानों की मांग पर धान खरीद के गुणवत्ता मानकों में ढील देने की घोषणा कर दी है, लेकिन यह फैसला ऐसे समय पर आया है जब राज्य में खरीद प्रक्रिया लगभग समाप्त हो चुकी है। अब तक करीब 150 लाख मीट्रिक टन (LMT) धान की खरीद हो चुकी है और केवल 5 से 10 LMT की आवक ही मंडियों में शेष है। ऐसे में किसानों और मिलर्स दोनों ने इस निर्णय को “बहुत देर से आया कदम” बताया है।

पंजाब सरकार ने अगस्त-सितंबर में हुई भारी बारिश और बाढ़ के कारण फसलों को हुए नुकसान के बाद केंद्र से बार-बार मानकों में ढील की अपील की थी। केंद्र की टीम ने 13 से 17 अक्टूबर के बीच राज्य की मंडियों का दौरा कर नमूने भी लिए थे, लेकिन घोषणा अब जाकर की गई है।

संशोधित दिशानिर्देशों के तहत क्षतिग्रस्त, बदरंग, अंकुरित और कीटग्रस्त दानों की सीमा 5 प्रतिशत से बढ़ाकर 10 प्रतिशत कर दी गई है। हालांकि, इनमें से अंकुरित, क्षतिग्रस्त या कीटग्रस्त दाने 4 प्रतिशत से अधिक नहीं हो सकते। यह ढील पंजाब और चंडीगढ़ के लिए वर्तमान खरीफ विपणन सत्र (KMS) 2025-26 में लागू होगी और इस पर कोई मूल्य कटौती नहीं की जाएगी।

केंद्र की टीम द्वारा लिए गए नमूनों में धान को 7 से 22 प्रतिशत तक नुकसान पाया गया, जिसमें गुरदासपुर जिला सबसे अधिक प्रभावित रहा। लेकिन किसानों का कहना है कि अधिकांश फसल पहले ही ₹2,390 प्रति क्विंटल के न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) पर बिक चुकी है, इसलिए इस राहत का अब कोई व्यावहारिक लाभ नहीं मिलेगा।

वहीं, राज्य के मिलर्स ने भी इस फैसले को अधूरा बताया है। पंजाब राइस इंडस्ट्रीज़ एसोसिएशन के रंजीत सिंह जोसान ने कहा कि धान से चावल निकालने की दर (आउट-टर्न रेशियो) अब भी 67 प्रतिशत रखी गई है, यानी हर 100 किलो धान से 67 किलो चावल देना होगा—जबकि बड़ी मात्रा में धान क्षतिग्रस्त है। उन्होंने कहा, “हम उम्मीद कर रहे थे कि आउट-टर्न रेशियो में भी राहत दी जाएगी, अब हमें यह मामला केंद्र के सामने दोबारा उठाना पड़ेगा।”

केंद्र ने यह भी स्पष्ट किया है कि ढीले मानकों पर खरीदे गए धान को राज्य सरकार को अलग से संग्रहित करना होगा और मंडियों में सुखाने की सुविधाएं विकसित करनी होंगी। इस प्रक्रिया में किसी भी प्रकार की हानि या कमी की भरपाई केंद्र द्वारा नहीं की जाएगी, बल्कि इसकी जिम्मेदारी राज्य सरकार की होगी।

विशेषज्ञों का मानना है कि यह कदम किसानों और मिलर्स के लिए प्रतीकात्मक राहत भर है। किसानों का कहना है कि यदि यह निर्णय समय पर लिया जाता, तो हजारों क्विंटल धान को नुकसान से बचाया जा सकता था। अब जब मंडियां लगभग खाली हैं, तो यह ढील “कागज़ी राहत” बनकर रह गई है।

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